अब रही बात आरक्षण के सही या गलत होने की तो कु छ लोग तर्क देते हैं की दलितों का २५०० साल तक उत्पीडन किया गया है, तो क्या हिन्दुस्तान में पिछले २५०० सालों में कोई भी न्यायप्रिय राजा या शासक आजके हमारे भ्रष्ट नेतावों जैसा भी संवेदनशील नहीं रहा है, जिसको दिखता की दलितों के साथ अन्याय हो रहा है, जबकि इस दौरान ज्यादातर शासन मुसलमानों और अंग्रेजों का रहा है, जिसकी हमारा दलित समाज बहुत इज्जत करता है और एक महानुभाव तो “अंग्रेजी देवी मैया” का मंदिर भी बनवा चुके हैं। फिर भी कुछ लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दलितों की सारी परेशानियों का दोष तथाकिथत समाज के अगड़े वर्गों (सवर्णों) को देते हैं जो की खुद इस दौरान प्रताड़ित होते रहे हैं और आजादी के बाद तो शायद और भी प्रताड़ित किये जा रहे हैं। हमारी सरकारें इन तथाकिथत (सवर्णों) के साथ इस तरह से व्यवहार कर रही हैं जैसे ये वर्ग किसी और देश के नागिरक हों या किसी अन्य ग्रह से आये हों।
डॉ अम्बेडकर ने संविधान में आरक्षण का प्राविधान सिर्फ १० वर्षों के लिए किया था वो भी सिर्फ दलितों के लिए पर आज राजनीति और वोट बैंक के चलते आरक्षण अनंत काल की यात्रा पर है, और इसमें उन वर्गों को भी शामिल कर लिया गया है जो शायद इन तथाकिथत अगड़े वर्गों से कई गुना ज्यादा आगे हैं, और अब तो मुसलमानों को भी आरक्षण देने की बात चल रही है, उन मुसलमानों को जिसने १००० साल तक हिन्दुस्तान पर राज किया फिर भी आज वो पिछड़े हैं?
और हमारी सरकारों को सबसे ज्यादा सम्पन्न ब्रह्मण, राजपूत या अन्य सवर्ण दिखते हैं, ये कितने सम्पन्न हैं ये देखने के लिए किसी भी सरकार के पास कोई “खच्चर कमेटी” नहीं वर्ना वो इन वर्गों का सर्वे कराती तो पता चलता की ये वर्ग भी उसी तरह भूख, बीमारी, बेरोजगारी तथा अन्य प्रकार की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से घिरा हुआ है जिस प्रकार अन्य वर्ग पर सरकार तो २-४ अगड़े वर्गों के बड़े नामो से अंदाजा लगा लेती है की ये वर्ग सबसे आगे हैं, तभी तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद भी आरक्षण की सीमा ५०% से ऊपर पहुँच चुकी है और अभी १५% मुसलमानों को भी देने की बात चल रही है, जबिक पहले से ही इस आरक्षण का लाभ ऐसे लोगों को मिल रहा है जो समाज में काफी आगे निकल चुके हैं। क्या किसी ने कभी इस पर विचार किया कि जातिगत आरक्षण के कारण जो एक बार आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ चुके हैं उनको आगे ये लाभ न लेने दिया जाय? अगर एक ही परिवार को आरक्षण का लाभ बार -बार मिलेगा
तो क्या ये आरक्षण की मूलधारणा के अनुरूप है? जब करोडो तथाकथित सवर्ण गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहें हों तो क्या जातिगत आरक्षण उचित है, ये तो शायद उन दलितों के साथ भी नाइंसाफी है जिसको अभी तक एक बार भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला, पर आरक्षण का नाम लेना शायद अयोध्या में मंदिर बनाने की बात करने जैसा संवेदनशील मुद्दा हो गया है जिस पर सही या गलत कुछ भी नहीं बोला जा सकता।
वैसे मेरा तो मानना है की आरक्षण को पूरी तरह से ख़त्म कर देना चाहिए और संसद में कानून बनाकर इन तथाकिथत सवर्णों को किसी भी सरकारी या गैरसरकारी पद के लिए अयोग्य घोषित करके जो भी सरकारी या गैरसरकारी पद हैं उनको मुसलमानों, दलितों तथा अन्य पिछड़े वर्गों में बाँट देना चाहिए और सारे सवर्णों को अछूत घोषित करके दलितों और मुश्लिमों को ये हक़ देना चाहिये की वो सवर्णों को अपने यहाँ दास बनाकर रख सकते हैं, उनसे बेगारी करा सकते हैं,
उनको भी मैला ढोने पर विवश कर सकते हैं, आखिर तभी तो समाज में बदलाव आएगा और दलित समाज भी सिर उठाके चल सकेगा। हालाँकि सरकार की नीतियां इसी ओर अग्रसित हैं पर इसमें थोड़ी और तेजी लाने की जरुरत है………
http://www.pravakta.com/author/mukesh-cmishra
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